आपका निष्कर्ष सही है। रफी अहमद किदवई साहब बाराबंकी जिले के थे और उन्होने मारवाड़ी व्यापारी का वेश धर कर कलकत्ता के मारवाड़ियों के गोदामों पर खुद छापा डाल कर अन्न को सरकारी दुकानों से जनता को बंटवाया था। अम्मीरो को झुग्गी-झोंपड़ी मे भेज कर प्रेक्टिल कराने का सुझाव आपने सही दिया है ,अमल कराने वाले माने तब न !
सामयिक आलेख।
ReplyDeleteयोजना आयोग द्वारा दी गई गरीबों की नई परिभाषा हास्यास्पद है।
आपका निष्कर्ष सही है। रफी अहमद किदवई साहब बाराबंकी जिले के थे और उन्होने मारवाड़ी व्यापारी का वेश धर कर कलकत्ता के मारवाड़ियों के गोदामों पर खुद छापा डाल कर अन्न को सरकारी दुकानों से जनता को बंटवाया था।
ReplyDeleteअम्मीरो को झुग्गी-झोंपड़ी मे भेज कर प्रेक्टिल कराने का सुझाव आपने सही दिया है ,अमल कराने वाले माने तब न !
सटीक विश्लेषण ... राजभाषा हिंदी ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
ReplyDeleteदिनों दिन स्थिति विकट होती जा रही है, और सरकार को टू जी के पंजों ने ऐसा जकड़ा है कि बाक़ी किसी दिशा में उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा।
ReplyDeleteसुन्दर और सामयिक आलेख
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