Saturday 8 September 2012


पूरा तंत्र आम आदमी के विरुद्ध क्यों है?



कुछ भी लिखने से पूर्व पूरा तंत्र व आम आदमी को परिभाषित करना परम आवश्यक है ‘पूरा तंत्र’ से हमारा तात्पर्य समूचे नेतृत्व से है जो समूचे लोकतंत्र को संचालित कर रहा है अर्थात विधायिका (संसद) कार्यपालिका (सरकार) न्यायपालिका तथा चौथा स्तम्भ मीडिया जो विशेष तौर पर भारतीय लोकतंत्र को खास प्रकार से प्रभावित रखता है इन चारों स्तम्भों के कर्त्ताओं को तथा देश के सभी राज्यों एवं कारपोरेट जगत के नीति निर्धारकों को भी इस पूरे तंत्र में शामिल कर लिया जाए तो हमारी समझ से देश की कुल जनसंख्या का एक प्रतिशत से अधिक किसी भी सूरत में नहीं बैठेगा। हमारा अभिप्राय स्पष्ट है कि कुल जनसंख्या का एक प्रतिशत बुद्धिजीवी वर्ग जिसकी ग्रिप में पूरा तंत्र है। आम आदमी को परिभाषित करने लिए हम सरकारी आकड़ों का सहारा लेते हैं। आकड़ों के मुताबिक औसत आय 50 हजार सालाना है औसत का मतलब 50 प्रतिशत होता है अर्थात देश के 50 प्रतिशत व्यक्तियों की मासिक आय लगभग 4 हजार रुपये के आस-पास है। शेष 50 प्रतिशत में से कुल संख्या के लगभग 10 प्रतिशत व्यक्ति सरकारी राजस्व की भागीदारी में तथा कुछ प्रतिशत तिकड़मबाजी से भले ही सरकार को राजस्व नहीं देते हैं, परन्तु सम्पन्न वर्ग में आते है इस प्रकार से कुल मिलाकर 90 प्रतिशत आम आदमी हैं शेष 10 प्रतिशत सम्पन्न वर्ग में आते हैं और मात्र एक प्रतिशत व्यक्तियों का इस पूरे तंत्र पर कब्जा है।

आम आदमी और तंत्र से जुड़े ताकतवर बुद्धिजीवी व्यक्तियों के बारे में जब विचार आता है तो मुझे प्रसिद्ध साहित्यकार श्री नरेन्द्र कोहली द्वारा रचित रामकथा के एक सुन्दर प्रकरण की याद आती है जो आज के परिपेक्ष्य में उतना ही सार्थक है जितना सनातन समय में सार्थक रहा होगा। प्रकरण इस प्रकार से है अयोध्या के राजा दशरथ से महर्षि विश्वामित्र ने उनके यशस्वी एवं पराक्रमी पुत्र राम और लक्ष्मण को अपने यज्ञ की राक्षसों से रक्षा करने के उद्देश्य से ले जाने के लिये कहा। राजा दशरथ ने ना चाहते हुए भी महर्षी विश्वामित्र के श्राप के डर से मना नहीं कर सके और राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र को सहर्ष सौंप दिया।  अयोध्या की सीमाओं की समाप्ति के बाद राजशी रथ को त्याग दिया गया और राम और लक्ष्मण को महर्षी ने अपने साथ साधारण मनुष्यों की तरह पैदल चलने की आज्ञा दी। विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण से कहा मेरे पास दिव्य शक्तियां हैं जिनको में अपने ज्ञान से आपको प्रदान करना चाहता हूं ताकि उन दिव्य शक्तियों का प्रयोग करके मेरे यज्ञ की राक्षसों से रक्षा करने का दायित्व आप उठा सके। परन्तु उन शक्तियों को प्रदान करने से पूर्व मैं यह अवश्य जानना चाहूंगा कि आप दोनों उन दिव्य शक्तियों के ज्ञान प्राप्ति के सुपात्र भी हैं अथवा नहीं। यदि आप सुपात्र नहीं हैं तो मेरे लिए बेहतर होगा में यही से आप दोनों को वापिस भेज दूं, अतः आवश्यक है मुझसे कुछ प्रश्न करो, जिनका में उत्तर दूं और फिर में आप दोनों से कुछ प्रश्न करूंगा जिसका आप उत्तर देंगे जिनका उत्तर पाने के बाद मैं संतुष्ट होने पर ही किसी निर्णय पर पहुचूंगा। काफी समय तक प्रश्नोत्तर का दौर चला बहुत सारे प्रश्न किये गये और दोनों और से उत्तर दिये गये इस श्रंखला में एक प्रश्न लक्ष्यम ने महर्षि के सामने प्रस्तुत किया जिसका उत्तर महर्षि ने बड़ा स्टीक रूप से दिया जिसकी चर्चा मैं खास तौर से करना चाहूंगा। लक्ष्मण ने महर्षि से बड़ा सारगर्भित प्रश्न रखते हुए कहा बुद्धिजीवी से आपका क्या तात्पर्य है। महर्षि विश्वामित्र ने तपाक से जवाब दिया जो अपनी बुद्धि का प्रयोग सम्पन्न व्यक्तियों की सम्पन्नता बनाये रखने अथवा और अधिक उन्नत करने में लगाये वही बुद्धिजीवी है। महर्षि विश्वामित्र का यह कथन वास्तव में आज भी उतना ही सार्थक और प्रसांगिक है कि जितना सदियों पूर्व था। इस प्रसंग की चर्चा हमने विशेष रूप से इसलिये की ताकि इस निर्णय पर आसानी से पहुंचा जा सके कि आज के इस पूरे तंत्र पर एकाधिकार प्राप्त बुद्धिजीवी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से  सारी शक्ति और बुद्धि केवल 10 प्रतिशत सम्पन्न व्यक्तियों के हितों को साधने में रहती है तथा अन्य 90 प्रतिशत आम जन को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

आजादी के बाद हमारे देश ने आदर्श एवं कल्याणकारी राज्य के रूप में विधि सम्मत लोकतंत्र की स्थापना की जिसकों नाम दिया गया ‘‘सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’’ लोकतंत्र का सीधा सा मतलब है लोगों द्वारा लोगों के लिए और लोगों का तंत्र। इस तंत्र में से लोग कैसे और कब गायब हो गये पता ही नहीं चला। समाजवादी होने का मतलब साफ है आर्थिक दृष्टि से 1 से 10 प्रतिशत तक का अंतर होना चाहिए। परन्तु हमारे देश में तो आम आदमी और तंत्र पर एकाधिकार जमाये व्यक्तियों की आय का अंतर 1 से 100 अथवा  1 से 1000 को छोड़िये 1 से एक लाख अथवा एक करोड़ से भी अधिक है। फिर यह कैसा समाजवाद है? हमारे संविधान में आम लोगों के लिये स्पष्ट व्याख्या है राज्य का कर्त्तव्य एवं एकमात्र लक्ष्य है सभी देशवासियों को रोटी, कपड़ा और मकान, एक समान मिले। यह कितना सत्य है दीवार पर लिखी इबारत की तरह, स्पष्ट है आम आदमी अर्थात 90 प्रतिशत व्यक्ति तो रोटी और कपड़े में ही उलझा रहता है। मकान की तो कल्पना भी नहीं कर सकता। मकान अर्थात जमीन के वर्चस्व की लड़ाई एक प्रतिशत जिनका इस तंत्र पर कब्जा है और 10 प्रतिशत जो सम्पन्न वर्ग है के बीच है जो धीरे-धीरे 10 प्रतिशत से खिसक कर 1 प्रतिशत के पास जा रहा है। पहले दौर में जय प्रकाश नारायण की जनक्रांति के बाद सत्ता सुख से बने नये ‘भूपति’ 1 प्रतिशत वर्ग में शामिल हो गये दूसरे दौर में वी.पी. सिंह की सत्ता पलट के बाद भूपति से ‘भूमाफिया’ हो गये तथा 1 प्रतिशत वर्ग में और अधिक शामिल हो गये और अब आर्थिक उदारीकरण तथा योग गुरु बाबा रामदेव के विदेशी धन को वापस लाने के आंदोलन के बाद तो विदेशी धन पूरी तरह रियल स्टेट के कारोबार में समा गया है अब तो भारत की पूरी जमीन पर केवल 1 प्रतिशत वर्ग का कब्जा सीमित हो जायेगा। 

रोटी, कपड़ा और मकान के बाद हम प्राकृतिक संशाधनों पर चर्चा करेंगे जो प्रकृति का मुफ्त उपहार है। हवा, पानी, अग्नि, पृथ्वी और आकाश सभी प्रकृति के आवश्यक तत्व है जिनके योग से पूरा संसार बना है। इस सम्पूर्ण संसर में हमारा देश भी इस संसार का एक छोटा सा हिस्सा है हमारे देश में प्राकृतिक संशाधन जो प्रकृति की मुफ्त देन है उसमें पृथ्वी की हम चर्चा कर चुके है किस प्रकार पृथ्वी और उसके गर्भ में छुपे बहुमूल्य खनिज पदार्थ आम आदमी की पहंुच से दूर हो चुके हैं, बंदरबांट युद्ध स्तर पर जारी है। आकाश में विचरण करना कितना बहुमूल्य है आम आदमी की पहुंच से बाहर है। पानी के नाम पर दूषित पानी तो उपलब्ध है परन्तु वह भी कुछ समय के लिए, यदि समय रहते आवश्यक प्रबंध नहीं किये गये तो आने वाला युद्ध पानी पर ही होगा। हम चर्चा करेंगे हवा और प्रकाश अर्थात बिजली की। यह हमारे जीवन के आवश्यक अंग ही वरन अनिवार्य हैं, इनके बिना जीवत रहना संभव नहीं है। हवा के अनेक रूप है। हवा में विद्युत तरंगों का समावेश करके संचार माध्यम हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। सरकार की कल्याणकारी अवधारणा ने मोबाइल संस्कृति को आम आदमी की जीवनधारा में जोड़ दिया है। ठीक इसी प्रकार से बिजली उत्पादन में सरकार की सदैव कोशिश रही है कि आम आदमी को सस्ती से सस्ती बिजली उपलब्ध हो सके। परन्तु हमारी सरकार की इन कल्याणकारी एवं जनहित के प्रयासों पर प्रभावशाली एवं विशेष अधिकार वाले ब्यूरो क्रेटस वेतन भोगी नौकरशाहों की दृष्टि सुखद नहीं है। अभी हाल में चर्चा में आई सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार टू-जी स्पेक्ट्रम में 1.76 लाख करोड़ तथा कोयला ब्लाक आवंटन में 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान की भरपाई समय रहते सरकार कर देती तो एक आकलन के अनुसार मोबाइल की रेट 1 मिनट की 15 रुपये हो जाती और बिजली की दर कोयले के महंगे हो जाने के कारण 25 रुपये प्रति यूनिट से भी ज्यादा पड़ती। अतः इस हिसाब से यकीन मानिये आम आदमी मोबाईल के इस्तेमाल को तो भूल जाइए देखने को भी तरस जाता और बिजली की एक चमक को प्राप्त करने से सदैव वंचित रहता। अब आगे-आगे देखिये होता क्या है?