Thursday 19 July 2012

हमारा राष्ट्रपति कैसा हो?



विश्व में हमारे लोकतंत्र की पहचान विविध धर्मावलम्बियों, भाषाओं, जातियों उपजातियों, प्रजातियों वर्गों उपवर्गों के मध्य अनेक विभिन्नताओं एवं विषमताओं के बीच एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता हैं। हमारे लोकतंत्र का प्रमुख तथा प्रथम नागरिक हमारी इस पुरातन एवं समृद्धशाली भारतीय संस्कृति का पोषक एवं प्रतीक होना चाहिए जिसका दृष्टिकोण निश्चित रूप से विशाल हो। सच बात तो यह है कि संकुचित दृष्टिकोण हमारी संस्कृति में कोई स्थान नहीं रखता।

हमारा पुरातन इतिहास हमारी मूल्यवान धरोहर है। इतिहासकार अभी तक प्रमाणित नहीं कर पाये है कि आर्य इस पवित्र भू-भाग के मूलवासी थे अथवा विदेशी फिर भी आर्य सभ्यता हमारा आर्दश है और वेदों पर आधारित गीता दर्शन हमारी सांस्कृतिक अवधारणाओं का मार्ग प्रशस्त करती है अनेक विदेशी भ्रमणकारी-प्रवासी के रूप में भारत आये और इसकी पवित्र मिट्टी में रच-बस गये। अनेक विदेशी आक्रांता शट, हुण, मुगल, अंग्रेज आदि का आगमन हुआ और कालान्तर में हमारी संस्कृति को आत्मसात कर लिया। आज उनकी आत्मा में निवास करती है। अति हिन्दूवादियों को शायद अटपटा सा लगे। जब हम अपने आदि देवता गणपति की पूजा अर्चना करते हुए कहते हैं ‘‘भोग लगे लड्डुओं का संत करे सेवा’’ के अंतर्गत बून्दियों से बना लड्डु मुगल कालीन सभ्यता की पाक कला की अद्भुत देन है।

हमार विशाल दृष्टिकोण ही विश्व प्रेम व विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। हमारे राष्ट्र का मुखिया यदि संकुचित विचारों का होगा और देश की सीमाओं तक ही सीमित सोच का होगा तो हम विश्व को कोई सार्थक चिन्तन देने में सर्वथा असमर्थ रहेंगे।

उपरोक्त विचार वर्तमान राष्ट्रपति के चुनावों के परिपेक्ष में प्रस्तुत किये गये हैं। राष्ट्रपति के उस आसान पर आसीन होने हेतु दो प्रत्याशी प्रमुख रूप से सामने हैं। प्रथम प्रत्याशी सत्तापक्ष की ओर से माननीय श्री प्रणव मुखर्जी का नाम प्रस्तुत है जो एक लम्बे समय से राष्ट्र की कार्यपालिका में वरिष्ठता रखते हुए अनेक मंत्रालयों का कार्यभार सफलतापूर्वक एवं गरिमा के साथ निभाया है तथा बेशुमार उपलब्धियां हासिल की हैं। साफ छवि के आदर्णीय मुखर्जी महामहिम के गरिमापूर्ण पद के लिए सर्वथा श्रेष्ठ ही नहीं अपितु सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा नाम विपक्ष की ओर से श्री ए.के. संगमा को नाम प्रस्तुत किया गया है जो प्र्रत्येक प्रकार सेे अनुपयुक्त है।

भारतीय राजनीति में श्री पी.ए. संगमा ने यद्यपि लम्बी पारी खेली है तथा साफ छवि के व्यक्ति हैं। तथापि उनकी पहचान विशेष रूप से इसलिए नहीं है कि वे आठ बार लोकसभा सदस्य रह चुके हैं और न ही इसलिए है कि वे सन् 1988 से 1991 तक मेघालय राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं अथवा 1996 में लोकसभा सभापति रहे हैं, उनकी असली पहचान कांग्रेस में रहते हुए कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री पद के लिये विरोध करना है और वह भी उनके विदेश में जन्म को लेकर। यद्यपि श्रीमती सोनिया गांधी का यह बहुत बड़ा बड़प्पन था कि भारतीय संविधान में उनको प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने में कोई रूकावट नहीं थी तदापि उन्होंने इस पद को स्वीकार नहीं किया तथा अब तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय श्री कलाम द्वारा वास्तविकता बताने के बाद तो यह निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि यह माननीय सोनिया जी का महान त्याग था।

हमें सबसे बड़ा खेद इनके विरोधाभास को लेकर है। श्री पी.ए. संगमा ईसाई धर्म से हैं तथा जनजाति वर्ग से सम्बंध रखते है, प्रत्येक कोई इस विचारधारा से भली-भांति परिचत है कि ईसाई धर्म का प्रमुख आधार मानवीय संवेदना है। योग्यता का आधार जन्म स्थान तो कदापि हो ही नहीं सकता। यह ईसाई धर्म की मूल भावना के विरूद्ध है। जनजाति वर्ग की संस्कृति की मूल अवधारणा भी नितांत रूप से मानवीय मूल्यों पर आधारित है अतएवं निजी रूप से ईसाई तथा जनजाति वर्ग का होते हुए वैचारिक दृष्टि से विपरीत एवं बीमार मानसिकता से पीड़ित हैं। ऐसा व्यक्ति विविधता में एकता प्रदिपादित करने वाले राष्ट्र का प्रथम व्यक्ति होने में सभी प्रकार से अक्षम है। विशेष तौर से किसी बात का विरोध करना और फिर उसे स्वीकार कर लेना और सत्ता सुख भोगना तो उसकी नियतता को प्रमाणित करता है। स्मरण रहे जनजाति समाज के उत्थान, विकास एवं जागरुक करने हेतु बहुत सारी सामाजिक संस्थाये कार्यरत हैं, जिन्हें केन्द्र सरकार से बहुत बड़ी संख्या में आर्थिक मदद मिलती है कुछ संघ परिवार की संस्थायें भी अपनी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यरत है और कुछ ईसाई मिशनरीज भी धर्म प्रचार में विदेशी धन का प्रयोग कर रहे हैं। कुल मिलाकर यह सारी समाज सेवा का कार्य जनजातियों के कल्याण के लिए कम धन कमाने में ज्यादा हो रहा है। अतएवं जनजातियों के कल्याण हेतु एक बहुआयामी योजना को कार्यरूप देने की परम आवश्यकता है परन्तु जनजातियों के वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करने का दम भरने वाले श्री पी.ए. संगमा का इस क्षेत्र में कोई भी सारगर्भित योगदान नहीं रहा है। श्री पी.ए. संगमा के नाम की प्रस्तुति तथा समर्थक उन तमाम राजनैतिक दलों द्वारा किया जा रहा है जिनकी विचारधारा संकुचि तथा क्षेत्रवाद तक सीमित है। जहां तक भाजपा का सवाल है यह तो उनकी पुरानी आदत है कांग्रेस द्वारा फेके हुए बासीफूल को उन्होंने अपने शयन कक्ष में सदैव सजा कर रखा है।